रक्षा बंधन पर्व के साथ ही गुग्गा जाहरवीर की गाथा घर घर पहुंचाने वाली गुग्गा मंडली लढ़यानी द्वारा प्रदेश में जो आपदा से नुकसान हुआ व जान माल की हानि हुई उसकी सुख शांति के लिए ठाई माता मंदिर व गुग्गा मंदिर में जाकर अरदास की
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रक्षा बंधन पर्व के साथ ही गुग्गा जाहरवीर की गाथा घर घर पहुंचाने वाली गुग्गा मंडली लढ़यानी द्वारा प्रदेश में जो आपदा से नुकसान हुआ व जान माल की हानि हुई उसकी सुख शांति के लिए ठाई माता मंदिर व गुग्गा मंदिर में जाकर अरदास की

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रक्षा बंधन पर्व के साथ ही गुग्गा जाहरवीर की गाथा घर घर पहुंचाने वाली गुग्गा मंडली लढ़यानी द्वारा  प्रदेश में जो  आपदा से नुकसान हुआ व जान माल की हानि हुई उसकी सुख शांति के लिए ठाई माता मंदिर व गुग्गा मंदिर में जाकर अरदास की

अजय शर्मा भराड़ी--///

रक्षा बंधन पर्व के साथ ही गुग्गा जाहरवीर की गाथा घर घर पहुंचाने वाली गुग्गा मंडली लढ़यानी द्वारा  प्रदेश में जो  आपदा से नुकसान हुआ व जान माल की हानि हुई उसकी सुख शांति के लिए ठाई माता मंदिर व गुग्गा मंदिर में जाकर अरदास की।गुग्गजाहर वीर की गाथा बताते हुए विजय कुमार व तिलक धीमान ने बताया की पिछले 31 वर्ष से  गुगा जाहर पीर की  गाथा घर घर जाकर सुना रहे है।


भारत  अपनी आध्यात्मिकता के लिए जहां सारे विश्व में अपना विशेष स्थान रखता है वहाँ भारत में हिमाचल प्रदेश को तपोभूमि कहलाने का गौरव सारे संसार में प्राप्त है।

गुग्गा जाहरवीर हिमाचल प्रदेश की अमर ऐतिहासिक वीर गाथा है ।
गोगा जी का जन्म विक्रम संवत 1003 चूरु जिले के ददरेवा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम जेवरसिंह  तथा माता का नाम बाछल देवी था।  ऐसी मान्यता है की गोगा जी का जन्म  गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ था। और इनकी पत्नी का नाम सुरिहल रानी था।


गोगा जी राजस्थान के लोक देवता हैं जिन्हे 'जाहरवीर गोगा राणा के नाम से भी जाना जाता है।  गुग्गा जी को सांपों का देवता के रूप में पूजा करते हैं। गुगा जी मारू देश के राजा थे और वह  एक महान वीर योद्धा थे। गुगा जी कई लड़ाइयां लड़ी  और उनमें विजय भी प्राप्त की थी।  गुगा  का  अपने  मौसेरे भाई अरजन व सुरजन से राज्य के पीछे जागड़ा हुआ था । जिसमें गुगा का युद्ध हुआ और उसने उन्हें मार दिया था।  

ओर जब गुगा घर आया तो इस बात से उनकी माता बाछल रुस्त  हो गयी । और गुगा वहा से चला गया और धरती में छपन हो  गया ।  रानी सुरहील  ने अपनी तपस्या के जोर पर गुगा को बाहर आने पर विवश कर दिया ।। जब गुग्गा रात को घर आया तो उसकी माँ ने उसके पकड़ लिया कि अब मत जा। तो उसने कहा कि अगले दिन 12 बजे मारू देश के सभी लोग एकत्र होंगे और उस वक्त में धरती से निकलते  हुए कोई टोके नही ।  अगले दिन 12 बजे  लोग गुग्गा की निकलने की प्रतीक्षा करने लगे । अभी गुग्गा के  सिर का ऊपरी भाग ओर नीले  घोडे के अगले सूबों का कुछ भाग ही निकल पाए थे कि लोगों  ने  शोर मचा का टोक दिया । उसे आगे गुग्गा नही निकला और नीले सहित वही पत्थर की मूर्त बन गया ।

हिमाचल प्रदेश में गुग्गा पूजा की कथा  बहुत प्रचलित  है ।प्रति वर्ष रक्षाबन्धन से लेकर गुगा नवमी से पिछले दिन तक हमारे यहां 10 / 11 मनुष्यों को मण्डली निरन्तर गांव - गांव में गुगा - गाथा गाती नंगे पांव फिरती है । मण्डली के मुखिया को स्थानीय भाषा में ' चेला ' कहते हैं जो लोहे की छड़ी जिसके सिरे पर सांप के आकार मुँह बनाया जाता है और  उस पर रंगी हुई ' मौलियाँ ' बन्धी रहती हैं , लेकर मण्डली के साथ चलता है। और चेले की पीठ के ऊपर   होता है


 एक आदमी कांसे की थाली बजाता है जिसे ' वैजन्तरी ' कहते । हैं । बाकी सब के पास डमरू होते हैं । जब भी किसी घर में गुगा - मण्डली पहुँचती है तो चेला घर के दरवाजे के सामने छड़ी गाड़ देता है । घर का एक आदमी थाली या छोटी टोकरी में प्रायः अनाज अथवा श्रद्धानुसार उसमें पैसे डाल कर या कपड़ा आदि रख कर छड़ी के साथ रख देता है ।


 गुगल धूप या दूसरा धूप जला कर छड़ी के पास रख दिया जाता है और गुग्गा का अभिवादन व आरती की जाती है । मण्डली के लोग गुग्गा गाथा का कोई अंश गाते हैं जिसे लोग ध्यानपूर्वक सुनते हैं । यही क्रम प्रत्येक घर में दोहराया जाता है डेरा की कथा सुनते वक़्त कई बार चेला या बइन्त्री वह लोगो को खेल आ जाती है  ।फिर मंडली का सदस्य उसको लोहे का संगल देता है  और वह  उसे जोर जोर से  अपनी पीठ  पर मरता है  परन्तु उसे  खरोंच तक  नही आती है । गुग्गा जाहर वीर को सांपों से रक्षा करना वाला देवता भी कहा जाता है और यह जादू टोने के प्रभाव से मुक्त करता है तथा हर इच्छा पूरी करता है।गुग्गा नवमी से कुछ दिन पूर्व गुग्गा - स्थान की सफाई और सजाया जाता है। गुग्गा नवमी के दिन  प्रातः ही लोग रोट पकाकर गुग्गा के नाम चढ़ाते है। लोगो  का विश्वास है कि इस दिन से सारे साँप गुगा की 'कार' में  जाते है। कुछ नक्कारे सांप ही बाहर रहते है।


गुग्गा -नवमी के पश्चात गुग्गा स्थानों पर मेलों का आयोजन  भी  होता है । कई जगह मेले वाले दिन  भी  गुग्गा मंदिर  पर रोट व अनाज आदि चढ़ाए जाते है । कई  मेले एक से अधिक दिन भी चलते है ।
 गुगा मेले में  छोटी छोटी  खाने पीने की दुकानें , बच्चों के खिलोने  की  दुकानें   खुलती है और कुश्ती भी करवाई जाती है |


  लोग कुश्ती का खूब आनंद लेते है मेला सम्पात होने के उपरांत  गुग्गा मंदिर की फेरी लेते है जिसमे चेला छड़ी के ऊपर गूगल धूप लगाकर  सौंगल पीठ पर रखता  और उसके पीछे  मंडली के बैन्त्री और स्थानीय लोग गुगा जी मंदिर की फेरे  अपनी मनोकामना पूरी  करने के लिए लेते और उनकी मनोकामना भी पुरी होती है।इस अवसर पर अजय शर्मा, तिलक धीमान,विजय कुमार,विजय प्रकाश, प्रेम सागर,संजीव,सुरेश, सुरेंद्र,देवराज,ब्रह्मानंद, साहिल,जय कृष्ण,यशपाल,रत्न लाल,पाली राम,नवीन ,विद्या सागर व सुरेश सहित काफी संख्या में लोग उपस्थित रहे।
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