घुमारवीं ( मोनिका शामा )
आज देश तरक्की के मामले में आगे बढ़ रहा है, सरकारें गरीबी को मिटाने की बातें करती हैं।लेकिन धरातल पर आज भी ऐसे परिवार मौजूद हैं जो दो वक्त की रोटी व रहने लायक घर के लिए तरस रहे हैं, ऐसा ही एक परिवार घुमारवीं उपमंडल की सेऊ पंचायत के नसवाल गांव में है।
घर का मुखिया कृष्ण राम जन्म से अपाहिज है, सही से चल नही सकता, पत्नी मानसिक तौर पर अस्वस्थ है। चार बेटियां हैं वो भी मन्दबुद्धि। जहां दो कमरों का कच्चा मकान कभी भी गिर सकता है। जहां खाना बनाते हैं वहीं सोने को मजबूर हैं। पांच वर्ष से बीपीएल में नाम चयनित है लेकिन आज तक घर बनाने के लिए पैसे नही मिले।
चार बेटियां 12 वर्षीयप्रियंका आठवीं में है,13 वर्षीय संगीता आठवीं से स्कूल छोड़ चुकी है। 18 साल की सीमा आठवीं से स्कूल छोड़ कर मामा के घर रहने को मजबूर है। तथा 20 वर्षीय कल्पना भी आठवीं से स्कूल छोड़कर मासी के घर रह रही है।
प्रियंका व संगीता अपने पापा के साथ रहती हैं। शौचालय न होने के कारण आज भी यह परिवार बेटियों सहित खुले में शौच करने को जाते हैं। एक कमरे में नहाना उसी में सोना इनकी दयनीय हालत को बयां करता है।
मिलने वाली पेंशन से 600 रुपये का सोसायटी से राशन, 300 रुपये बिजली का बिल, 500 रुपये की महीने की दवाई कृष्ण व 500 रुपये की महीने का दवाई का खर्च कृष्ण की पत्नी का आता है। और जेब में कुछ न बचने के कारण लस्सी के साथ चपाती खाकर पेट भरना पड़ता है।
कई बार तो खाना नशीब न होने के कारण यह परिवार भूखे सोने को मजबूर है। बिडम्बना है कि इस परिवार को पंचायत की तरफ से रहने लायक मकान भी नशीब नही हो पाया है। स्वछ भारत की बातें तो बड़ी होती हैं लेकिन यह परिवार बेटियों सहित आज भी खुले में शौच जाने को मजबूर है।
परिवार के मुखिया कृष्ण राम ने बताया कि परिवार की हालत सही नही है। मन्दबुद्धि दो बेटियों को रिश्तेदार पाल रहे हैं। जबकि दो अन्य बेटियां उनके साथ रह रही हैं। दो टूटे कमरों में गुजारा करना पड़ रहा है। जन्म से ही एक टांग से अपाहिज हूं, चलने में भी असमर्थ हूँ। लेकिन परिवार को खाना खिलाने के लिए खुद खाना बनाना पड़ता है।
कई बार लोग राशन दे देते हैं। जबकि कई बार भूखे सोना पड़ता है। घर में अनाज न होने के कारण कई बार लस्सी के साथ चपाती या चाबल डालकर वच्चों को खिलाए जाते हैं।
कृष्ण राम ने बताया कि घरवाली भी मानसिक तौर पर अस्वस्थ है हमीरपुर के निजी क्लिनिक से हर महीने दवाई लानी पड़ती है। खुद को हर महीने दवाई खरीदने पड़ती है। बिजली बिल व थोड़ा बहुत राशन के लिए पेंशन खत्म हो जाती है।
बेटियां मन्दबुद्धि होने के कारण स्कूल में पढ़ नही पाई। वर्ष 2016 में बीपीएल में नाम डाला गया । लेकिन सिवाए राशन के कुछ नही मिलता। बेबसी में दो कच्चे कमरों में रह रहे हैं। मकान की दीवारें खोखली हो चुकी हैं। कभी भी मकान गिर सकता है। एक कमरे में खाना बनाते हैं वही पति पत्नी रात काटते हैं। जबकि दूसरे कमरे में दोनो बेटियों को सुलाते हैं।
इस परिवार की बेबसी इतनी बढ़ चुकी है कि आज के दौर में भी यह परिवार खुले में शौच जाता है। दो वक्त का खाना नशीब नही होता है। और बातें गरीबी मिटाने की होती हैं।