किफलिया यानी भूमि अक्खे से होगा एक्सपायर सेफालोस्पोरिन दवाओं का निष्पादन- डॉ निशात भाटिया
अजय शर्मा भराड़ी---///
किफलिया यानी भूमि अक्खे से होगा एक्सपायर सेफालोस्पोरिन दवाओं का निष्पादन
इंसान आज चाहे जितनी भी तरक्की कर ले पर प्रकृति के पास उसकी तरक्की का तोड़ है
बहुत सी बीमारियां प्रकृति से उत्पन जीव जंतुओं से शुरू होती हैं और उनमें से बहुत का इलाज़ कुछ एक अन्य जीव जंतुओं से निकले रसायनों में होता है जिन्हें हम एंटीबायोटिक कहते हैं
एक शोध के अनुसार भारत पूरे विश्व में एंटीबिटिक दवाओं के सर्वाधिक उपयोग वाला पहला देश है जब उपयोग सबसे ज्यादा होगा तो इनका उत्पादन भी सर्वाधिक होगा ऐसे में इन दवाओं का एक्सपायर होने के बावजूद इनका निष्पादन बहुत जरूरी हो जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि के दवाएं जल स्त्रोत में मिलके उनमें मौजूद बैक्टीरिया में प्रतिरोध पैदा कर देती हैं और
इन दवाओं का किसी व्यक्ति के अंदर प्रभाव खत्म हो जाता है
इसी विषय पर पिछले पांच सालों से शोध कर रहे डॉ निशात भाटिया, डॉ राहुल शर्मा और डॉ आशा को एक बहुत बड़ी सफलता मिली है जिसमे कि उन्होंने सेफालोस्पोरिन एंटीबायोटिक को प्रकृति में पाए जाने वाले किफ्लिया या भूमि अक्खे के बीजों में पाए जाने रसायन से इनके निष्पादन को अंजाम दिया है किफ्लिया निचले हिमालय में पाई जाने वाली बेरी की एक प्रजाति है जो कि मुख्यत ग्रीष्म ऋतु में छाया वाली जगहों पर मुख्यत उगती है
इसमें पाए जाने वाले रसायनों में एंथोसायनिन, फ्लेवोनोल्स, प्रोएंथोसायनिडिन्स, एलागिटैनिन्स और गैलोटैनिन्स और फेनोलिक एसिड पाए जाते हैं जो की सेहत के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं ऐसे रसायनों की मौजूदगी यदि किसी दवा के निष्पादन की ओर ले जाती है तो उसकी महत्त्वता और बढ़ जाती है
इस विषय पर डॉ निशात भाटिया ने बताया कुछ वर्ष पहले भी इसी तरह के काम अंजाम दिया गया था पर इस बार कॉपर नेनोपार्टिकल्स में इन दवाओं के निष्पादन की क्षमता लगभग ज्यादा ही देखी गई है और साथ ही इस प्रकार के निष्पादन में किसी भी प्रकार के उपोत्पाद यानी की बाय प्रोडक्ट्स भी नहीं बनते हैं जो कि पर्यावरण को किसी भी प्रकार का नुकसान पहुंचाए
जर्मनी की एक पत्रिका एनवायरमेंट साइंस एंड पॉल्यूशन रिसर्च में यह शोध प्रकाशित भी है जिसमें इस पूरी प्रक्रिया को बताया गया है।