सिलक्यारा टनल हादसा: विशाल बोले -36 घंटे पानी पीकर गुजारे, पहले 24 घंटे नहीं थी बाहर निकलने की उम्मीद
शुरुआती 24 घंटे में टनल से बाहर निकलने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। मन में बस यह ख्याल आता था कि कंपनी और अन्य बाहर से उन्हें निकालने का प्रयास कर रहे होंगे। 36 घंटे टनल के अंदर मौजूद ऑक्सीजन के सहारे गुजारे और पानी पीकर भूख मिटाई। घुटन महसूस होने लगी तो टनल से पानी की निकासी के लिए बिछाई पाइपें खोलीं और ऑक्सीजन ली। यहां चार और तीन इंच की दो पाइपें थीं। इन्हीं के सहारे 36 घंटे बाद बाहर लोगों से संपर्क हो पाया। 12 दिन ड्राई फ्रूट और मुरमुरों से पेट भरा। छह इंच का पाइप जब अंदर पहुंचा तब जाकर उन्हें खाना नसीब हुआ। यह कहना है उत्तरकाशी की सिलक्यारा टनल से 17 दिन बाद सुरक्षित बाहर निकले मंडी की बल्ह घाटी के बंगोट गांव निवासी विशाल का।
विशाल ने बताया कि वह स्वस्थ हैं। एम्स ऋषिकेश में बॉडी टेस्ट हो रहे हैं। यदि टेस्ट रिपोर्ट ठीक रही तो जल्द अपनी माटी बल्ह घाटी पहुंचकर परिजनों से मिलूंगा। परिजनों ने उन्हें कहा है कि अब टनल में काम नहीं करना है, ऐसे में उम्मीद है कि प्रदेश सरकार उन्हें रोजगार जरूर उपलब्ध करवाएगी। टनल में बंद होने के बाद सभी साथी परिवार की तरह एकजुट हो गए और एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते गए। टनल के अंदर दो किमी का क्षेत्र था, जहां पर टहलते थे और समय व्यतीत करते थे। समय बिताने के लिए कभी कागज के पत्ते बनाए तो कभी मिट्ठी के खिलौने बनाकर समय बिताया। सोने के लिए टनल में इस्तेमाल होने वाली शीट का इस्तेमाल किया। नीचे इसे बिछाया और इसी को ओढ़ा भी।
पता नहीं था कब निकलेंगे टनल से, बाहर से मिलता रहा हौसला
आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों ऐसा सोचते हुए 17 दिन निकल गए। विशाल के अनुसार सकारात्मक सोच के साथ समय गुजर पाया। नकारात्मक चीजें जहन में नहीं आने दी। रेस्क्यू की जानकारी मिलने के बाद रौनक लौटी और बाहर निकलने की उम्मीद बंध गई। उन्हें मालूम नहीं था कि कब निकलेंगे, लेकिन बाहर से हो रही बातचीत में एक दो दिन करते करते 17 दिन गुजर गए। बाहर संपर्क होने के बाद बड़ा हौसला मिला और सुरक्षित बाहर निकलने की उम्मीद बंध गई। टनल में काटे 17 दिन वह ताउम्र नहीं भूल पाएगा। टनल के अंदर गुजारा समय भी जिंदगी का एक बड़ा अनुभव है। यह अनुभव हमेशा काम भी आएगा और याद भी दिलाएगा कि ऐसा भी एक दौर जिंदगी में देखा था।
आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों ऐसा सोचते हुए 17 दिन निकल गए। विशाल के अनुसार सकारात्मक सोच के साथ समय गुजर पाया। नकारात्मक चीजें जहन में नहीं आने दी। रेस्क्यू की जानकारी मिलने के बाद रौनक लौटी और बाहर निकलने की उम्मीद बंध गई। उन्हें मालूम नहीं था कि कब निकलेंगे, लेकिन बाहर से हो रही बातचीत में एक दो दिन करते करते 17 दिन गुजर गए। बाहर संपर्क होने के बाद बड़ा हौसला मिला और सुरक्षित बाहर निकलने की उम्मीद बंध गई। टनल में काटे 17 दिन वह ताउम्र नहीं भूल पाएगा। टनल के अंदर गुजारा समय भी जिंदगी का एक बड़ा अनुभव है। यह अनुभव हमेशा काम भी आएगा और याद भी दिलाएगा कि ऐसा भी एक दौर जिंदगी में देखा था।