अंतरराष्ट्रीय नृत्यांगना फूलां चंदेल राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित
Type Here to Get Search Results !

अंतरराष्ट्रीय नृत्यांगना फूलां चंदेल राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित

Views

अंतरराष्ट्रीय नृत्यांगना फूलां चंदेल राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित

बिलासपुर की घुमारवीं तहसील के सोई गांव की निवासी हैं फूलां


भुट्टी वीवर्ज को-आपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड कुल्लू का इस बार का चांद कुल्लवी लाल चंद प्रार्थी पहाड़ी कला-संस्कृति-सभ्यता का राष्ट्रीय पुरस्कार  अंतरराष्ट्रीय नृत्यांगना फूलां चंदेल ने अपने पुरस्कारों की फेहरिस्त शामिल कर लिया है । 

ग्यारह वर्ष की आयु में अपने गांव सोई में पहला कार्यक्रम पेश किया 

हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जनपद की घुमारवीं तहसील की कोठी पंचायत के सोई गांव में 10 मई 1963 को दमोदरी देवी एवं  कांशी राम चंदेल के घर जन्मी फूलां चंदेल का अब तक का जीवन लोक नृत्य के अभ्युत्थान  के लिए समर्पित रहा है । बाल कलाकार के रूप में इस होनहार लोक नृत्य  की नर्तकी ने ग्यारह वर्ष की आयु में अपने गांव सोई में पहला कार्यक्रम पेश किया था । तब से लेकर अब तक जो सिलसिला शुरू हुआ वह उसे बुलन्दियों तक पहुंचाने में कामयाब रहा ।  फूलां चंदेल गर्व से कहती है कि उन्होंने विदेशों में भी अपनी लोककला की धाक जमाई है तथा अपने देश का तो शायद ही कोई कोना बचा हो जहां उनके द्वारा बिलासपुर लोक शैली के नृत्य की प्रस्तुति न दी गई हो । 

बिलासपुरी लोक घट नृत्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया

एक ओर जहां बिलासपुरी लोक घट नृत्य  अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने में इस कलाकार को गर्व है वहीं दूसरी ओर अपने क्षेत्र में कुछ कर दिखाने का संतोष भी है । नृत्य में विशेष रुचि होने के कारण फूलां चंदेल ने किशोरावस्था में पाठशालाओं की लोकनृत्य प्रतियोगिता में राज्य स्तर पर अपनी टीम को सर्वोतम स्थान ही नहीं दिलाया बल्कि चमत्कारी घट नृत्य पेश करके दर्शक श्रोताओं की खूब वाहवाही लूटी और तालियां भी बटोरी । प्रदेश में आयोजित होने वाले अंतराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय मेलो में फूलां चंदेल ने पूजा व घट नृत्य की प्रस्तुतियां देकर कार्यक्रमों को यादगार बनाया । 
 
मुख्याध्यापिका पद से सेवानिवृत्त हो चुकी हैं फूलां चंदेल 

प्राथमिक पाठशाला के मुख्याध्यापिका पद से सेवानिवृत्त हो चुकी फूलां चंदेल का विवाह घुमारवीं उपमंडल की घण्डालवीं पंचायत के घण्डालवीं गांव में चौहान वंशज मिलाप चौहान के साथ हुआ है । हलांकि विवाह के बाद फूलां चंदेल फूलां चौहान हो गई लेकिन लोकसंस्कृति में रुचि रखने वाले उन्हें फूलां चंदेल के नाम से ही जानते हैं । अंतरराष्ट्रीय स्तर की इस लोकनर्तकी में वचपन से ही कुछ कर दिखने की चाह थी । अपनी इस कामयाबी का श्रेय अपने स्वजनों को देती हुई वह कहती है कि परिवार में सबसे बड़ी संतान होने के कारण मां बाप ने उन्हें हमेशा बेटा ही समझा । इसलिए उन्हें आगे बढ़ने की हमेशा प्रेरणा ही मिलती रही । 

ससुराल में भी संगीत और नृत्य को प्रोत्साहित करने वाला वातावरण मिला

यह इस नृत्यांगना की खुश किस्मती ही कहा जाएगा कि ससुराल में भी उन्हें ऐसा ही वातावरण मिला । जहां इस लोक कला को सदैव सम्मान की दृष्टि से देखा गया । अपनी उपलब्धियों के लिए वह अपने पति को भी बराबर का भागीदार मानती है । अंतराष्ट्रीय सांस्कृतिक आदान प्रदान योजना हो या अंतरराज्यीय फूलां चंदेल ने हर जगह अपने हुनर का लोहा मनवाया । नेहरू युवा केन्द्र बिलासपुर, भाषा एवं संस्कृति विभाग, भाषा अकादमी शिमला, यव सेवाएं व उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पटियाला की ओर से आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों इनकी बराबर की भागीदारी रही है । हर कार्यक्रम में उन्हें श्रेष्ठता का पुरस्कार मिला है । पहले देश के विभिन्न राज्यों में जाकर उन्होंने वहां की लोकसंस्कृति को भी नजदीक से देखा है ।

अब तक मिले सम्मान

इससे पहले इस प्रख्यात नृत्यांगना ने "हिमालय श्री", "मातृ सम्मान', 'शिखर सम्मान" एवं "सर्वश्रेष्ठ नृत्यंगना" आदि के अलावा अनेक राज्य स्तर के पुरस्कारों को अपने नाम किया है ।

पर्वतीय लोकसंस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने के लिए इन्हें जी न्यूज पंजाब चैनल द्वारा भी शिखर सम्मान दिया गया है ।
".

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad