घुमारवीं के लुखानी वस्ती में रहने वाले प्रवासियों को भी समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की जरूरत
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घुमारवीं के लुखानी वस्ती में रहने वाले प्रवासियों को भी समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की जरूरत

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घुमारवीं के लुखानी वस्ती में रहने वाले प्रवासियों को भी समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की जरूरत


घुमारवीं नगर परिषद के कल्याणा वार्ड की लुखानी वस्ती में प्रवासियों की कार्यप्रणाली से दुखी लोगों ने प्रशासन, पुलिस व नगर परिषद के कार्यकारी अधिकारी से शिकायत कर दी है । अभी तक महज नगर परिषद के कर्मचारी मौका पर भेज कर महज खनापूर्ती कर दी है । यह पहला अवसर है कि नगर परिषद के कर्ता धर्ता समस्या के समाधान के बजाए और उलझा रहे हैं । इसलिए स्थानीय लोग प्रवासियों से ज्यादा अपनों से मानसिक रूप से प्रताड़ित हो रहे हैं ।


उल्लेखनीय है कि जिन जनप्रतनिधियों ने वोट की राजनीति के चलते यहां बसाने में मदद की है । उन्होंने कुछेक के मतदाता सूची में डलवा दिए और राशनकार्ड भी बनवा दिए । लेकिन सरकार की अन्य कल्याणकारी योजनाओं की उन्हें जागरूक नहीं किया । नतीजन यहां सरकार की अन्य कोई सुविधा नहीं पहुंच पाई है । यहां तक उन्हें आपस में बोलचाल की भी कोई तमीज नहीं है । छोटे-बड़े सब बच्चे अनपढ़ है । नगर परिषद का कोई कर्मचारी इन्हें स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भी नहीं करता है । कोई परिवार नियोजन के बारे में जागरूक नहीं कर रहा है । स्वतंत्रता के 75 वर्ष बीत जाने के बाद इन प्रवासियों के जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं हो पाया और जो इनसे वोट लेकर अपनी राजनीति चमकाते हैं । वे भी नहीं चाहते कि उनके जीवन स्तर में ज्यादा सुधार तथा वे लोग भी समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें ।


गौरतलब है कि घुमारवीं के कल्याणा वार्ड की पार्षद नगर परिषद की अध्यक्ष रीता सहगल है । इस वार्ड की लुखानी वस्ती में करीब चार दर्जन प्रवासी चार कमरों व आठ झुंगियों में रहते हैं । कमरे जर्जर अवस्था में है । इसलिए ये लोग ज्यादातर झुंगियों में ही रहते हैं । प्राप्त जानकारी के मुताबिक कमरे व झूंगी का किराया दो हजार रुपए हैं । इस हिसाब से जमीन मालिक को 25 हजार के करीब मासिक किराया लेता है । सुविधओं के नाम पर मात्र दो शौचालय हैं । कपड़े दूसरों की जमीन में सूखते हैं । सब ने बाइकें रखी है । उनसे भी काफी हो हल्ला करते रहते हैं । अपने टीवी का वाल्यूम इतना ऊंचा रखते हैं कि दूर दूर तक भी ईकुछ भी सुनाई नहीं देता ।



 सबसे ज्यादा मुश्किल यहां चूल्हों से निकलने वाले धुंए से हैं । करीब एक सौ मीटर के दौरे में यहां लकड़ी के आठ दस चुल्हें जलते हैं ।आजकल गीली लकड़ियों से खूब धुंआ निकलता है जो सीधे स्थानीय लोगों के कमरों में चला जाता है । लेकिन यहां रहने वाले दर्जन से अधिक परिवारों जिनमें ज्यादातर किराए पर रहते हैं तथा अपने बच्चों को विभिन्न प्रतिष्टित शिक्षण संस्थानों में पढ़ाते हैं लेकिन यहां बसे प्रवासियों की गतिविधियां ऐसी है कि सवेरे पांच बजे से रात दस बजे तक ऐसा वातावरण बना रहता है कि यहां पढ़ना तो दूर यहां रहना भी मुशिकल हो जाता है । चारों तरफ को हो-हल्ला पड़ा रहता है । आपस में बड़ी बदतमीजी से गाली गलौच करते है । कई बार तो ये अश्लील गालियों की सारी सीमाएं ही लांद देते है । यहां महिलाएं व नौजवान लड़कियां भी रहती है जो शर्म से पानी-पानी हो जाती है ।यदि कोई इन्हें बोलता है तो ये मारने की धमकियां भी देते हैं । इन्होंने कुत्ते भी पाल रखे हैं । जो दिन रात भौंकते रहते हैं ।
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