दिव्यांग विनोद को आज तक नहीं मिला किसी भी सरकारी योजना का लाभ
भराड़ी,17 जून ( रजनीश धीमान)
प्रदेश सरकार दिव्यांगों की मदद के लिए भले ही कई योजनाएं चलाने का दावा करती हो लेकिन इनका धरातल पर उन लोगों को कितना लाभ मिलता है इसका सबसे बड़ा उदाहरण है गांव चलालडु में देखने को मिल रहा है।
3 दिसंबर 1987 को बिना हाथ और बिना पैरों के पैदा हुआ विनोद कुमार जो 89 फीसदी दिव्यांग होने के बावजूद भी आज सिर्फ सरकारी अनुदान के सहारे अपना जीवन यापन कर रहा है।
परंतु पढ़ा-लिखा होने के कारण किसी सरकारी अनुदान के सहारे नहीं बल्कि अपनी शिक्षा के दम पर अपना जीवन जीना चाहता है परंतु पिछले कई वर्षों एक अदद नोकरी केे तलाश में सभी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट काट कर थक हार चुका है। आज विनोद बिना हाथ पैर के भी वह सब कुछ ऐसा कर सकता है जो हाथ पैर वाले लोग कर लेेते हैं परंतु उसकी मजबूरी ऐसी है कि यह सरकार द्वारा गरीबों के लिए चलाई जा रही मनरेगा में भी काम नहीं कर सकता परंतु पढ़ा लिखा होने के कारण वह एक नौकरी का हकदार तो बनता ही है
2006 में अपनी हायर सेकेंडरी शिक्षा पूरी करने के बाद विनोद कुमार ने राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान बिलासपुर से 1 वर्षीय कंप्यूटर डिप्लोमा भी किया है जिसके बाद आज वह घर में ही हेल्थ सप्लीमेंट मार्केटिंग का काम कर रहा है परंतु घर में सबसे बड़ा होने के कारण घर की सारी जिम्मेवारी पर आ गई है क्योंकि उनके पिता जो लोक निर्माण विभाग में कार्यरत थे कि ड्यूटी के समय आकस्मिक निधन हो गया था।
जिसके 10 वर्ष बीत जाने के बााद भी करुणामूलक आधार पर भी कोई नौकरी नहीं दे पाई है जिसके लिए आप पूरे हकदार हैं और सरकार की अनदेखी की वजह से आज दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है विनोद कुमार पिछले 10 सालों में हिसार ऐसा कोई विभाग होगा जहां इन्होंने दिव्यांगों के लिए जारी की गई नौकरी के लिए अप्लाई ना किया हो परंतु ऊंची पहुंच ना होने के कारण या आज भी दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं.
अब इसे सरकार की लाचारी कहे या लापरवाही की आज तक कोई भी सरकार इसे काम नहीं दे पाई विनोद कुमार का कहना है कि उन्हें हर बार विभाग द्वारा बाहर का रास्ता दिखाया जाता है और उन्हें ऐसा महसूस कराया जाता है जैसे मैं समाज का हिस्सा ही नहीं है आज विनोद कुुमार 2016 एक्ट के ऊपर भी सवाल उठाते हैं जिसमें हर विभाग में दिव्यांग लोगों के लिए नौकरी में 4ः कोटा रखा गया है
लेकिन उनका मानना है कि यह सिर्फ कागजों तक ही सीमित है और फाइलों में बंद पड़ा है परंतु है आज भी आने वाले दिनों में प्रदेश सरकार द्वारा भर्तियां निकलने की संभावना देख कर अपना मनोबल बढ़ाने में लगे हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि कभी ना कभी तो सरकारें जागेगी और देखेंगे।