डॉक्टर बंसी राम शर्मा लोक संस्कृति के पुरोधा थे-डाक्टर फुल्ल
मुख्य अतिथि डॉक्टर सुुशीफु कुमार फुल्ल ने कहा कि डॉक्टर बंसी राम शर्मा लोक संस्कृति की पुरोधा थे। वे पूरी तरह से लोक संस्कृति को समर्पित थे।डॉक्टर बंसी राम शर्मा ने 1965 से 1970 तक किन्नौर की लोक संस्कृति पर अपना शोध किया तथा किन्नर लोक साहित्य पर पी एच डी की उपाधि प्राप्त की जबकि उस समय किन्नौर जाना बहुत जोखिम भरा काम था।वर्ष 1996 में उन्हें साहित्य अकादमी द्वारा भाषा सम्मान भी प्रदान किया गया था। उन्होंने कई किताबें लिखी।उन्होंने पंजाब विश्वविदयालय में पी एच डी व एम फिल के छात्रों का मूल्यांकन भी किया।उन्होंने नए युवा साहित्यकारों को आगे आने का अवसर प्रदान किया।लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए उन्होंने स्वयं प्रदेश के दुर्गम क्षेत्रों का भ्रमण भी किया।उनको सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके कार्य को आगे बढ़ायें।कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉक्टर लेख राम शर्मा ने कहा कि डॉक्टर बंसी राम शर्मा द्वारा प्रदेश में लोक संस्कृति के संरक्षण में किये गए कार्य को हमेशा याद किया जाएगा।उन्होंने उन से जुड़े कई संस्मरण भी सुनाए।डॉक्टर रतन चंद शर्मा ने भी उनसे जुड़े कई संस्मरण साहित्यकारों के साथ सांझा किये।उन्होंने कहा कि वे बहुत ही आध्यात्मिक पुरुष थे तथा लोक साहित्य के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे।
डॉक्टर अनेक सांख्यान ने भी अपने संस्मरण सांझा करके उनको श्रद्धांजलि दी।डॉक्टर बंसी राम शर्मा के सुपुत्र डॉक्टर पंकज ललित ने भी उनसे जुड़ी कई बातें सांझा की।उन्होंने बताया कि जब पी एच डी के लिए विषय चुनने की बात आई तो उनके गाइड ने कहा कि क्योंकि किन्नौर आज तक अनछुआ रहा है तथा किसी ने भी किन्नौर पर नहीं लिखा है आप किन्नर संस्कृति को अपना विषय बनाओ।वह स्वेच्छा से अपना स्थानांतरण करवाकर वहां गए जबकि उस समय किन्नौर जाना बहुत ही कठिन था।उनकी बेटी डॉक्टर मीनाक्षी शर्मा ने भी इस गोष्ठी में भाग लिया।इस कार्यक्रम का संचालन रवींद्र कुमार शर्मा ने किया। कार्यक्रम में राम लाल पाठक,डॉक्टर रवींद्र ठाकुर,डॉक्टर अनेक सांख्यान,रवींद्र कुमार शर्मा,रवि सांख्यान,कविता सिसोदिया,रवींद्र चंदेल कमल,विजय सहगल,रवींद्र साथी,ललिता कश्यप,अनिल कुमार नील,भीम सिंह नेगी,सुशील पुंडीर,बंदना भट्ट ने बहुत ही सुंदर रचनाएँ प्रस्तुत की जिसकी मुख्य अतिथि व अध्यक्ष ने मुक्त कंठ से सराहना की।उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि भविष्य में भी इस तरह के आयोजन होते रहेंगे व साहित्यकारों को योगदान को इसी तरह याद किया जाता रहेगा।