कोरोना वायरस महामारी के इस समय में जहां सहयोग, एकजुटता और अनुशासन की अपील की जा रही है वहीं दूसरी ओर इस महामारी से जंग में योद्धा की भूमिका निभा रहे डॉक्टर की वीआईपी कल्चर का शिकार हो रहे हैं। देश में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे के जहां बहुत बेहतर होने के दावे किए जा रहे हैं वहीं एक डॉक्टर को कोरोना संक्रमित मां के लिए अस्पताल में बेड न मिल पाना इस दावे की हकीकत पूरी तरह बयां कर रहे हैं। पढ़िए ये रिपोर्ट.
डॉक्टर ने कहा कि मां की स्थिति बिगड़ती जा रही थी। एक साथी ने फोन पर सलाह दी कि मां को निजी अस्पताल में भर्ती करवाओ, तब मैंने उन्हें निजी अस्पताल में भर्ती करवाया। डॉक्टर ने आरोप लगाया कि जिस अस्पताल में मैं काम करता हूं वहां सांसद से लेकर विधायकों के साथ उनके रिश्तेदारों के लिए भी बेड की व्यवस्था तुरंत हो जाती है और मैं वहीं काम करता हूं, लेकिन मुझे अपनी मां के लिए बेड नहीं मिल पाया
इस वीआईपी कल्चर से परेशान डॉक्टर ने कहा कि माननीयों के कई ऐसे भी रिश्तेदार और करीबी अस्पताल में भर्ती हुए हैं जिन्हें घर में ही आइसोलेट रहना चाहिए था, लेकिन फिर भी बेड मिल गया। उन्होंने कहा कि बेड आरक्षित करने का कोई नियम नहीं है। लेकिन हर अस्पताल में यह नियम चलता है। हालात ऐसे हो गए हैं कि अगर आप किसी पहुंच वाले व्यक्ति को नहीं जानते हैं तो आपके बचने की संभावना कम ही है।
वीआईपी कल्चर पर स्वास्थ्य मंत्रालय को पत्र
वहीं, महामारी के बीच अस्पतालों में सांसदों और विधायकों को अस्पताल में मिल रहे वीआईपी इलाज को लेकर फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (फोरडा) ने भी नाराजगी जताई है। फोरडा ने इसे लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को एक पत्र लिखकर इस पर रोक लगाने की मांग की है। पत्र में लिखा है कि नेताओं की दखलअंदाजी से सेवाएं प्रभावित होती हैं और जरूरतमंद मरीज वंचित रह सकते हैं।
फोरडा ने मांग की कि जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को निर्देश दिया जाए कि वह अपने इलाज के लिए उन्हीं संस्थानों में जाएं जो उन्हें विशेष तौर पर आवंटित किए गए हैं। सेवाएं बेहतर करने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करें और पर्याप्त वर्कफोर्स की व्यवस्था करें। स्वास्थ्यकर्मियों और पैरामेडिकल कर्मियों के इलाज के लिए भी एक विशेष स्थान निर्धारित किया जाए। जनप्रतिनिधियों की सिफारिशों पर रोक लगाई जाए।